The State of Chhattisgarh is known as rice bowl of India and follows a rich tradition of food culture .The Food preparation falls in different categories . Most of the traditional and tribe foods are made by rice and rice flour , curd(number of veg kadis) and variety of leaves like lal bhaji,chech bhaji ,kohda , bohar bhaji. Badi and Bijori are optional food categories also Gulgula ,pidiya ,dhoodh fara,balooshahi ,khurmi falls in sweet categories.

Jai Sai Baba

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Friday, September 4, 2020

पितृपक्ष महत्व,विधि एवं व्यंजन

How to do Pitrupaksha Puja 

 

  
                                                                     

"श्रद्धया इदं श्राद्धम "

जो श्रद्धा से किया गया हो ,वही श्राद्ध है। 

माता - पिता एवं अन्य परिवार के पूर्वजों की तृप्ति के लिए जो श्रद्धा पूर्वक कार्य किया जाये ,वह श्राद के रूप में जाना जाता है । भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावश्या के सोलह दिनों तक पूर्वजो की सेवा को पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है।   

माता -पिता एवं पूर्वजों की स्मृति हमेशा बनाये रखने के उद्देश्य से श्राद जैसे नियमों  की विवेचना की गयी है। शास्त्रों के अनुसार मृत्यु पश्चात् आत्मा का विस्तृत एवं वैज्ञानिक व्याख्यान बताया गया है। अश्विन कृष्ण  प्रतिपदा से अमावश्या तक ब्रह्माण्ड ऊर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर रहते हैं। कहा जाता है ,भौतिक शरीर के त्याग पश्चात् भी आत्मा में मोह, माया ,भूख  और प्यास जैसे भावों का अंश रह जाता है। 

हमारी भारतीय संस्कृति में  मनुष्य पर पितृ ऋण ,देव ऋण एवं ऋषि ऋण माने गए हैं ,जिसमें पितृ ऋण का स्थान सर्वोपरि है।  

पितृ ऋण में पिता के अतितिक्त माता एवं सभी पूर्वज जो हमें जीवन देने एवं इसके विकास में अपना सहयोग देते है ,सम्मिलित होते हैं।  पितृ पक्ष में तीन से लेकर अधिकतम पीढ़ियों तक के पिता एवं माता दोनों ही ओर के पितरों (पूर्वजों ) का तर्पण किया जाता है। 


तर्पण की विधि :

तर्पण  संस्कृत के  "तृप"  शब्द से उद्भव हुआ है,जिसका अर्थ है तृप्ति या संतुष्टि। देवताओं या पूर्वजो को श्रद्धा पूर्वक पवित्र जल का अर्पण, जो उन्हें तृप्त करता है।  

पितृपक्ष के प्रथम दिन सभी पितरों (पूर्वजों )का आह्वान किया जाता है। जिसके लिए सुबह स्नानादि दिनचर्या उपरान्त ,पूर्व दिशा में पूजा विधि की जाती है।  

तर्पण सामग्री :

तर्पण के लिए कांसे ,ताम्बे या चांदी के पात्रों (बर्तन ) का प्रयोग होता है। गंगा जल (न होने पर साफ़ पानी ),काली तिल ,चांवल, जौं ,कांसी/दरबा  घास और बिना या कम सुगंध वाले फूल, धातु के सिक्के , चन्दन पाउडर, जनेव की ज़रुरत होती है। कोसी या कुश घास की ४अंगूठी तर्पण के लिए पहनी जाती है।   

पूजा की जगह पर चांवल के आटे की रंगोली (चौक) बनाया जाता है।  

कांसी (कोसी )घास को पूर्वजों के प्रतीक रूप में देखा जाता है।  आप जितने वंशो के पूर्वजो का आह्वान करते हैं उनके लिए , ४ फ़ीट के बराबर टुकड़े ले कर एक बड़े प्लेट, केले की पत्ती या पानी के पात्र में थोड़ी थोड़ी दूर में रखें। चन्दन का टीका लगाया जाता है। फूलों और जनेव को चढ़ाया जाता है। 

आचमन एवं गणेश वंदना पश्चात् सीधे हाथ में साबुत चांवल (अक्षत) ,तिल  में थोड़ा जल छिड़क कर संकल्पना  की जाती है। कोसी की घास में पानी समर्पित करते हुए आह्वान (welcome ) किया जाता है, साथ की पूर्वजों एवं मृत माता पिता से सुख ,समृद्धि ,आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है। कहा जाता है कि तिल पितरों एवं देवताओं को पसंद होता है ,इसलिए तिल वाले जल को पुरे घर में छिड़का जाता है। 

ज्यादातर  स्वर्गीय पिता का श्राद अष्ठमी के दिन ,माता एवंम महिला पूर्वजो का श्राद नवमी को किया जाता है।  

रंगोली या चौक पर कंडे या छेने  को रखा जाता है ,और होम देने के साथ गृह शुद्धिकरण की विधि की जाती है। 

सर्व पितृ अमावश्या 


पितृ पक्ष के भोग (भोजन ):


Food in Pitrupaksha 

पितृ पक्ष में पितरों (पूर्वजों )के पसंद का सात्विक भोजन बना कर अर्पण किया जाता है। छत्तीसगढ़ में भोग के लिए ज्यादातर इन व्यंजनों  तैयार किये जाते हैं ,जो सात्विक एवं कम मसालों से बने हो। 

चांवल 

चौसेला (चांवल आटे  से बने व्यंजन ),

पूरी,

खीर 

उड़द दाल का बड़ा ,

इड़हर  या कोई दही की कढ़ी 

अनरसा 

गुलगुला 

भजिया 

जिमीकंद 


प्रसाद एवं भोजन 





भोग के साथ साथ भोजन के ४  छोटे छोटे दोने तैयार किये जाते है ,पहले हिस्से को होम (आग) में डाला जाता है,दूसरे हिस्से को कौंवे को ,बाकि के २ हिस्सों को कुत्ते और गाय को खिलाया जाता है।  साथ की ब्राह्मणो को भी अन्न एवं तिल दान किया जाता है।  
अलग अलग प्राणियों के हिस्से 


शुरू के चार दिन परिवार ,रिश्तेदार एवं पडोसी एक दूसरे को भोजन आमंत्रण देने के साथ साथ ,पितरो के लिए बने विशेष भोजन को आपस में बाँट कर खाते हैं। 

सर्व पितृ अमावस्या :

पूर्णिमा से शुरू होकर १६ वे दिन सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितृ पक्ष समाप्त होता है।  इस दिन सभी पूर्वजों एवं पितरों जिनकी पुण्य तिथि ज्ञात न हो ,या पुरे पितृपक्ष के दिनों में तर्पण न हुआ हो ,उन सभी पितरों से क्षमायाचना एवं सुख, समृद्धि केआशीर्वाद की प्रार्थना की  जाती है।  

इसे महालया ,बड़मावस्या या दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। इसका सार जीवन चक्र केअस्थायी होने के सत्य  और उसके महत्ता के प्रति आभार दर्शाता  है। 


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