The State of Chhattisgarh is known as rice bowl of India and follows a rich tradition of food culture .The Food preparation falls in different categories . Most of the traditional and tribe foods are made by rice and rice flour , curd(number of veg kadis) and variety of leaves like lal bhaji,chech bhaji ,kohda , bohar bhaji. Badi and Bijori are optional food categories also Gulgula ,pidiya ,dhoodh fara,balooshahi ,khurmi falls in sweet categories.

Jai Sai Baba

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Wednesday, September 23, 2020

Maize Crop in Chhattisgarh


Corn / Maize / jondhari



Corn / Maize / Jondhari:

The present days sweetcorn or corn is also known as Jondhari in Chhattisgarh,this word is getting extinct slowly. In Chhattisgarh,Maize is always grown in the fields or on the muddy divider of 2 fields. This is mostly harvested in rainy season.Maize is considered as heavy grains, which is very nutritious. Mize seeds are used in making bread out of its flour, popcorn or Coarsely grinded seeds are used as daliya .

Maize is known as "Queen of all cereals". In Chhattisgarh production of Maize has increased gradually. Due to increase in commercial consumptions farmers are growing it as cash crop. Earlier, it used to be harvested in rainy season with paddy crop but now farmers are growing it across the year .

It was grown by tribes since very olden times and still most of the production comes from the tribal belt example- Bastar,Kanker,Kondagaon,Dantewada region as well as some part of Sarguja district like Koria ,Balarampur,Surajpur.


After Paddy ,Maize is the most important crop in Chhattisgarh .The commercial demand gives a bright chance to increase the production. The production units have been set up for processing of Maize starch , Glucose, Maize oil, Gluten, Maize fodder/Husk, Conflakes. From very long time the farmers are  exporting Maize from Chhattisgarh to many other countries out side India.     



भुट्टा/मक्का/जोंधरी 


भुट्टा/मक्का/जोंधरी :

वर्तमान के sweetcorn या मक्के को छत्तीसगढ़ी में जोंधरी भी कहा जाता है ,जो कि एक लुप्त होता हुआ शब्द है। छत्तीसगढ़ में  खेतों की मेड़ों या बाड़ियों में  हमेशा से ही लगाया जाता है।इसे ज्यादातर बारिश में लगाया जाता है ।इसे भारी अनाज के रूप में देखा जाता है ,जो बहुत पौष्टिक होता है । भुट्टे के आटे की रोटी, घिस कर दलिये की तरह या लाई की तरह फोड़ कर प्रयोग होता है।





#MaizeinChhattisgarh

#ImporatanceofcorninChhattisgarh

#Bhuttautpadan

#Makkekekheti


Monday, September 14, 2020

Poi Bhaji Recipe-पोइ भाजी -Malabar Spinach Recipe

How can I cook Poi saag at home
पोइ भाजी - Poi Leaves -Malabar Spinach



Ingredient: 

Poi Leaves (Malabar Spinach)-1 bundle

Garlic cloves-4-5

Onion -1

Tomato -1 

Split Gram lentils -little/one fist

Red chilies -2-3

Salt - As per taste

Water, 

Oil

Watch Full Recipe Poi Chana Dal Recipe :





Chhattisgarh Recipes Poi Bhaji Chana Dal (Malabar Spinach )

Soak a fistful Chana Dal (gram lentil).

Take a bundle of Poi leaves (Malabar Spinach ).Pluck the leaves and wash them .  

Cut the leaves in fine pieces.

Take 4-5 chopped garlic cloves and Cut them in small pieces.

Also cut 1 tomato in pieces.


How to eat Poi
Ingredients for Poi Bhaji 


Lets heat 2 small spoons of edible oil in a pan .

Add chopped garlic, red chilies (1-2), Chopped onion and gram lentils (soaked in water for 10 minutes) in the hot oil .Cover and cook for 1 minute.

lets learn How to cook Malabar Spinach
Malabar Spinach Recipe


Now,transfer all the chopped Poi leaves (Malabar spinach) and spread the half a tea spoon salt above it,cover and cook it for 10 mins in medium flame.The chopped poi leaves/Bhaji are sticky in nature,so adding little water can be completely an option.

Poi Saag Recipe with Chana dal ,most nutritious leaves
Benefits of Poi


Once leaves are cooked and soft, add tomato pieces and let it cook for few secs.

Poi Benefits
Cooked Poi Leaves


When ,water become starts vaporizing from the pan, mix the leaves well and cook it for  2-5 min more, until poi leaves becomes dry .

Poi leaves are ready to serve with hot rice and daal.

Health Benefits & Nutrient Value : In Chhattisgarh, the dish of Malabar Spinach leaves are very healthy and full of minerals .This leaves are beneficial for the growing children and complete the additional requirements of nutrients in the body .

Calcium

Iron - 55 mg

Vit A

Vit C

 सबसे पहले पोइ के पत्तों को अच्छी तरह से धोएँ,और पत्तों को बारीक काट लें। अब एक कड़ाई में तेल गरम करें।  उसमें लहसुन के कटे हुए टुकड़े , लाल मिर्च, और १० मिनट पहले भीगी हुई चने की दाल को डाल  दे ,और ढँक  कर १ मिनट के लिए पकने दें। पोइ के कटे पत्तों को डालें औरआधा चम्मच नमक छिड़क कर ढक्कन लगा कर पकने दें । पोइ की पत्तियां थोड़ी चिपकने वाली और लसलसी होती है ,ज़रुरत पड़ने पर ही थोड़ा पानी डालें। 

थोड़ी देर बाद भाजी में से पानी बहार आने लगेगा और १० मिनट तक मद्धम आंच में  पूरा वाष्पीकृत को जाएगा। फिर टमाटर के कटे हुए टुकड़ों को मिला कर पकने दें, उसके बाद भाजी को अच्छे से  मिलाएं  और  पुरे  उड़ाते तक सूखा कर पकाएं।  अब गैस बंद कर दे।  गरमा गर्म भाजी को  चांवल के साथ परोसे।

पोइ भाजी 
गोल पत्तों और मोटे बेलों वाली ये भाजी प्रयातः पुरे विश्व में खायी जाती है। छत्तीसगढ़ में भी यह लगभग हर घर या घरों के आस पास देखने को मिलती है। पत्तों के साथ साथ इनकी मुलायम बेलों को भी पकाया जाता है। इसे Malabar Spinach ,Vine Spinach के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत ही ताकतवर पत्तियां है जो बढ़ते बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। 

Friday, September 4, 2020

पितृपक्ष महत्व,विधि एवं व्यंजन

How to do Pitrupaksha Puja 

 

  
                                                                     

"श्रद्धया इदं श्राद्धम "

जो श्रद्धा से किया गया हो ,वही श्राद्ध है। 

माता - पिता एवं अन्य परिवार के पूर्वजों की तृप्ति के लिए जो श्रद्धा पूर्वक कार्य किया जाये ,वह श्राद के रूप में जाना जाता है । भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावश्या के सोलह दिनों तक पूर्वजो की सेवा को पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है।   

माता -पिता एवं पूर्वजों की स्मृति हमेशा बनाये रखने के उद्देश्य से श्राद जैसे नियमों  की विवेचना की गयी है। शास्त्रों के अनुसार मृत्यु पश्चात् आत्मा का विस्तृत एवं वैज्ञानिक व्याख्यान बताया गया है। अश्विन कृष्ण  प्रतिपदा से अमावश्या तक ब्रह्माण्ड ऊर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर रहते हैं। कहा जाता है ,भौतिक शरीर के त्याग पश्चात् भी आत्मा में मोह, माया ,भूख  और प्यास जैसे भावों का अंश रह जाता है। 

हमारी भारतीय संस्कृति में  मनुष्य पर पितृ ऋण ,देव ऋण एवं ऋषि ऋण माने गए हैं ,जिसमें पितृ ऋण का स्थान सर्वोपरि है।  

पितृ ऋण में पिता के अतितिक्त माता एवं सभी पूर्वज जो हमें जीवन देने एवं इसके विकास में अपना सहयोग देते है ,सम्मिलित होते हैं।  पितृ पक्ष में तीन से लेकर अधिकतम पीढ़ियों तक के पिता एवं माता दोनों ही ओर के पितरों (पूर्वजों ) का तर्पण किया जाता है। 


तर्पण की विधि :

तर्पण  संस्कृत के  "तृप"  शब्द से उद्भव हुआ है,जिसका अर्थ है तृप्ति या संतुष्टि। देवताओं या पूर्वजो को श्रद्धा पूर्वक पवित्र जल का अर्पण, जो उन्हें तृप्त करता है।  

पितृपक्ष के प्रथम दिन सभी पितरों (पूर्वजों )का आह्वान किया जाता है। जिसके लिए सुबह स्नानादि दिनचर्या उपरान्त ,पूर्व दिशा में पूजा विधि की जाती है।  

तर्पण सामग्री :

तर्पण के लिए कांसे ,ताम्बे या चांदी के पात्रों (बर्तन ) का प्रयोग होता है। गंगा जल (न होने पर साफ़ पानी ),काली तिल ,चांवल, जौं ,कांसी/दरबा  घास और बिना या कम सुगंध वाले फूल, धातु के सिक्के , चन्दन पाउडर, जनेव की ज़रुरत होती है। कोसी या कुश घास की ४अंगूठी तर्पण के लिए पहनी जाती है।   

पूजा की जगह पर चांवल के आटे की रंगोली (चौक) बनाया जाता है।  

कांसी (कोसी )घास को पूर्वजों के प्रतीक रूप में देखा जाता है।  आप जितने वंशो के पूर्वजो का आह्वान करते हैं उनके लिए , ४ फ़ीट के बराबर टुकड़े ले कर एक बड़े प्लेट, केले की पत्ती या पानी के पात्र में थोड़ी थोड़ी दूर में रखें। चन्दन का टीका लगाया जाता है। फूलों और जनेव को चढ़ाया जाता है। 

आचमन एवं गणेश वंदना पश्चात् सीधे हाथ में साबुत चांवल (अक्षत) ,तिल  में थोड़ा जल छिड़क कर संकल्पना  की जाती है। कोसी की घास में पानी समर्पित करते हुए आह्वान (welcome ) किया जाता है, साथ की पूर्वजों एवं मृत माता पिता से सुख ,समृद्धि ,आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है। कहा जाता है कि तिल पितरों एवं देवताओं को पसंद होता है ,इसलिए तिल वाले जल को पुरे घर में छिड़का जाता है। 

ज्यादातर  स्वर्गीय पिता का श्राद अष्ठमी के दिन ,माता एवंम महिला पूर्वजो का श्राद नवमी को किया जाता है।  

रंगोली या चौक पर कंडे या छेने  को रखा जाता है ,और होम देने के साथ गृह शुद्धिकरण की विधि की जाती है। 

सर्व पितृ अमावश्या 


पितृ पक्ष के भोग (भोजन ):


Food in Pitrupaksha 

पितृ पक्ष में पितरों (पूर्वजों )के पसंद का सात्विक भोजन बना कर अर्पण किया जाता है। छत्तीसगढ़ में भोग के लिए ज्यादातर इन व्यंजनों  तैयार किये जाते हैं ,जो सात्विक एवं कम मसालों से बने हो। 

चांवल 

चौसेला (चांवल आटे  से बने व्यंजन ),

पूरी,

खीर 

उड़द दाल का बड़ा ,

इड़हर  या कोई दही की कढ़ी 

अनरसा 

गुलगुला 

भजिया 

जिमीकंद 


प्रसाद एवं भोजन 





भोग के साथ साथ भोजन के ४  छोटे छोटे दोने तैयार किये जाते है ,पहले हिस्से को होम (आग) में डाला जाता है,दूसरे हिस्से को कौंवे को ,बाकि के २ हिस्सों को कुत्ते और गाय को खिलाया जाता है।  साथ की ब्राह्मणो को भी अन्न एवं तिल दान किया जाता है।  
अलग अलग प्राणियों के हिस्से 


शुरू के चार दिन परिवार ,रिश्तेदार एवं पडोसी एक दूसरे को भोजन आमंत्रण देने के साथ साथ ,पितरो के लिए बने विशेष भोजन को आपस में बाँट कर खाते हैं। 

सर्व पितृ अमावस्या :

पूर्णिमा से शुरू होकर १६ वे दिन सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितृ पक्ष समाप्त होता है।  इस दिन सभी पूर्वजों एवं पितरों जिनकी पुण्य तिथि ज्ञात न हो ,या पुरे पितृपक्ष के दिनों में तर्पण न हुआ हो ,उन सभी पितरों से क्षमायाचना एवं सुख, समृद्धि केआशीर्वाद की प्रार्थना की  जाती है।  

इसे महालया ,बड़मावस्या या दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। इसका सार जीवन चक्र केअस्थायी होने के सत्य  और उसके महत्ता के प्रति आभार दर्शाता  है।