The State of Chhattisgarh is known as rice bowl of India and follows a rich tradition of food culture .The Food preparation falls in different categories . Most of the traditional and tribe foods are made by rice and rice flour , curd(number of veg kadis) and variety of leaves like lal bhaji,chech bhaji ,kohda , bohar bhaji. Badi and Bijori are optional food categories also Gulgula ,pidiya ,dhoodh fara,balooshahi ,khurmi falls in sweet categories.

Jai Sai Baba

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Friday, October 23, 2020

Traditional Dussehra Celebration and Food in Chhattisgarh

नवरात्रि का दसवां दिन विजयदशमी या दशहरे के रूप में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में यूँ तो इसे राम जी के रावण पर विजय प्राप्ति के रूप  में मनाया जाता है ,पर हर एक अलग अलग  क्षेत्रों में इसकी मान्यता व् मनाने के तरीकों में अंतर है।  

ज्यादातर दशहरे के दिन  सभी बड़े एवं पुरुष सदस्य स्नान उपरांत घर के कुल देवी देवताओं की पूजा करते है ,कई जगह ये पूजा गीले वस्त्र  पहन कर की जाती है। साथ ही  सभी तरह के हथियारों ,औजारों ,बही खातों की पूजा की जाती है। प्रसाद के रूप में मीठे एवं नमकीन घी  में बने रोठ व् नारियल चढ़ाया जाता है। 


भोजन में पूड़ी,बड़ा,भजिया ,दही बड़ा  जैसे विशेष भोज केले के पत्ते में परोसे जाते हैं। शाम को एक दूसरे को सोन पत्ते (पत्र)का आदान प्रदान किया जाता है। 




जिस तरह राम जी के रावण विजय पश्चात् अभिनन्दन हुआ था उसी तरह रावण दहन पश्चात् घर लौटने पर बड़ी बुजुर्ग महिलाएं घर के पुरुषों एवंम बच्चों का तिलक लगा अभिनन्दन करती है ,और दशहरे को  विजय दिवस के रूप में दर्शाती करती है।  

दशहरे के दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता है। 

प्रायतः नवरात्रि के नौ दिनों तक छत्तीसगढ़ के ग्रामीण एवं कुछ शहरी अंचल में रामलीला होती है व् दसवें (दशहरे )  दिन रावण वध के साथ  इसकी समाप्ति होती है। 

बस्तर का दशहरा  : बस्तर का विश्व प्रसिद्द दशहरा माँ दंतेश्वरी को समर्पित है। माँ दंतेश्वरी माँ दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी का रूप माना जाता है।  बस्तर का दशहरा पर्व 75 दिनों तक चलने  वाला एक सबसे लम्बा त्यौहार है। बस्तर के राज परिवार और आदिवासी जनता के माँ दन्तेश्वरी और भगवान जगन्नाथ के प्रति आस्था का प्रतीक दशहरा मनाया जाता है।यहाँ रावण दहन की परंपरा नहीं की जाती। जिसमें सभी ग्राम और वन  देवताओं को आमंत्रित  जाता है ,साथ ही प्रसिद्द रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है  , जिसे गोंचा पर्व कहा जाता है। गोंचा  एक तरह का गोल हरा फल होता है ,जिसे बांस से बने छोटे तोप जिसे तुपकी  कहा जाता है ,में भर कर चलाया जाता है। 

बस्तर दशहरा में काली (छिलके)वाली उड़द दाल का बड़ा ,सल्फी,लांदा (fermented rice ) का प्रयोग दिखता है। 


सरगुजा का दशहरा : सरगुजा (अंबिकापुर) में भी दशहरा मनाया जाता है ,जो कि सालों से राजपरिवार द्वारा आयोजित किया जाता रहा है। इस दिन राजकीय महल आम जनता  के लिए खुला होता है।अस्त्र शास्त्रों एवंम वाद्ययंत्रों की पूजा की जाती है।  सरगुजा के लखनपुर में दशहरे के एक दिन बाद रावण दहन होता है। इसी तरह कुछ क्षेत्रों में गंगा दशहरा के रूप में ५ दिनों का पर्व व् मेला होता है ,जो कि गंगा नदी के उद्भव से जुड़ा हुआ है। 

बड़ों  आशीर्वाद लेने के साथ साथ साथ पान खाने  की परंपरा भी है। 


जशपुर का दशहरा : जशपुर का दशहरा 27 पीढ़ियों से राजपरिवार द्वारा आयोजित किया जाता है। भगवान बालाजी एवं माता काली को समर्पित दशहरा उत्सव ,राजकीय परिवार के साथ साथ सभी बैगा ,पुजारिओं एवं आदिवासी जनजाति के लोग एक साथ मनाते हैं। दशहरे के दिन पूजा 800  साल पुराने काली मदिर में की जाती है।  यहाँ बकरे की बलि की परंपरा है।    

कोरवा जनजाति एवमं समुदाय द्वारा किये जाने वाले माँ खुड़िया रानी की  पूजा का विशेष महत्तव है। 

सारंगढ़ का दशहरा : अन्य जगहों के दशहरे से अलग सारंगढ़ में दशहरे के दिन गढ़ विच्छेदन की २०० साल पुरानी  परम्परा का आयोजन राज परिवार द्वारा किया जाता है। गढ़ विच्छेदन सैनिकों एवं वीरों के उत्साह वर्धन के लिए बनाई गयी विधा है।    



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